५६८ ॥ श्री च्याता माई जी ॥
पद:-
भजो नित सिय हरि प्रिय हरि को।१।
सतगुरु से सुमिरन विधि जानो साधो सुख लरिको।
ध्यान धुनी परकाश दसा लय मिलै सकै चरि को।
अमृत पिओ भरा घट भीतर को बरनै दरिको।
अनहद सुनो देव मुनि दर्शैं कौन करै सरिको।
सन्मुख चारों रूप बिराजैं फिर जग दुख अरि को।६।