५७२ ॥ श्री पंडित बासुदेव रक्षक जी ॥
पद:-
सुमिरन करो प्रिय श्याम सन्मुख हर समय छाये रहैं।
सतगुरु से जप विधि जानि करके दुःख सुख जे सम सहैं।
ध्यान धुनि लय परकाश पा फिर देख लें चौदह तहैं।
अमृत पियें अनहद सुनैं सुर मुनि उन्हैं प्रेमी कहैं।
बासदेव कह जे दीन बनि सूरति शब्द मारग गहैं।
तन छोड़ि लेवैं अचल पुर जग को न तन मन से चहैं।६।