५७३ ॥ श्री आकूती जी ॥
पद:-
श्री राम कृष्ण विष्णु को सन्मुख लखा चहैं।
सतगुरु से जप क भेद लै उस ख्याल में रहैं।
धुनि ध्यान नूर लय मिलै तन से न मन बहै।
अनहद सुनैं अमृत पियैं लखैं चौदहों तहैं।
हरि चरित देव मुनि के संग सुनैं औ कहैं।
तन त्यागि जांय निजपुर जग में न फिर ढहैं।६।