५७४ ॥ श्री प्रसूती जी ॥
पद:-
निजपुर को चलने के लिये तय्यार ह्वै रहौ।
सतगुरु से मार्ग जानि कै तन मन से जब गहौ।
धुनि ध्यान लय परकाश हो सन्मुख में हरि लहौ।
अमृत पिओ अनहद सुनो सुर मुनि के पग गहौ।
बनि दीन शान्ति चित्त से दुख सुख को सम सहौ।
तन छोड़ि जग में तब तुम काहे को फिर बहौ।६।