साईट में खोजें

५८० ॥ श्री अलोपी जी ॥


पद:-

त्यागो वाह वाह की टोपी।

या से तुम्हरा भला होहि नहिं देवैं नर्क में रोपी।

सतगुरु करो भजन बिधि जानो छूटै भव की चोपी।

ध्यान धुनी परकाश दसा लय जहं सुधि जावै छोपी।

अनहद सुनौ पियो घट अमृत असुर सकैं नहिं कोपी।५।

श्यामा श्याम देव मुनि दर्शैं सखा संग सब गोपी।

सूरति शब्द की जाप है अजपा कर्म देत दोउ तोपी।

अंत समय साकेत पठावै कहते सत्य अलोपी।८।