६०६ ॥ श्री पंगुली माई जी ॥
पद:-
चारों ललुवा बजावै बंसुरिया।
राम भरत औ लखन शत्रुहन पहिने पीत झंगुलिया।
पग पौटा कटि किंकणी राजत उर बघनखा कठुलिया।
नयनन काजल भाल में अनखा शिर पर केश झुवलिया।
हेम की वन्शी प्रेम मनोहर ता में सात छिदुलिया।५।
अधर पै धरि फिरि फूँकि बजावत फेरत सुभग अंगुलिया।
पुर बासी गुरु मातु पिता लखि तन मन प्रेम बढ़ुलिया।
सुर मुनि नभ ते जै जै बोलैं छबि उर मांहि भरुलिया।
सतगुरु करौ लखौ तब लीला करती बिनय पंगुलिया।
नाम में सूरति जाकी लागै सो यह रंग रंगुलिया।१०।