६०७ ॥ श्री ठाकुर पशकरन सिंह जी ॥
पद:-
खेलैं खेल बहुत बिधि रघुवर।
भरत लखन शत्रुहन सखन को सिखलावैं दे मन भर।
पट्टा बांक बिन्नौट औ बाना फेरैं लेजिम मुगदर।
ढाल कृपान फरी औ गत्तका बैठक दौड़ कूदि जांय फर फर।
रस्सी खींचब गिरह लगाउब कुश्ती पेंच पकड़ि चप पट धर।५।
बैठि उठाय खड़े पर बांधव थपकी दै फिर चितकर।
गज रथ अश्व दौर क्या बांकी देखत बनै कहत नहिं हम पर।
साज राग धुनि ताल ग्राम स्वर गाय बजाय बताय ख्याल तर।
भरत अलाप उतारत क्रमश: आय जात फिर सम पर।
सुर मुनि नभ ते जै जै बोलैं फेकैं सुमन शब्द हों झर झर।१०।
सतगुरु करौ लखौ यह लीला नाम क रंग चढ़ै तन मन पर।
ध्यान धुनी परकाश दसा लय पाय चलो फिर निज घर।१२।