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६१९ ॥ श्री हरि सिंह जी ॥


पद:-

धर्म के ग्रन्थ भारत से अर्व चौदह बिगाड़ेंगे।

बहुत दिन लागि लिखने में देखि कर फिर सुधारेंगे।

जले अग्नी में कछु जानो कछू धरनी में गाड़ेंगे।

बांधि कपड़ों में धरि कंकड़ बहुत सरितों में डारेंगे।

रहे जो कुछ सो धन लेकर बिदेशों में पवारेंगे।५।

बीज बोने भरे को हैं बचे क्या सब हमारे गे।

बदौलत उनकी सज्जन जन देश को फिर संभारेंगे।

कहैं हरि सिंह नर नारी एकता उर में धारेंगे।८।