६२८ ॥ श्री वैधी माई जी ॥
पद:-
मन क्यों निज मति कीन्हे भद्दी।१।
झूठ कपट औ बिषय में लागे भई बात सब भद्दी।२।
पल भर सुख नहिं मिलै चेत करु है यह पाप की गद्दी।३।
सतगुरु करि हम तुम हरि सुमिरैं जाय बयस क्यों रद्दी।४।
पद:-
मन क्यों निज मति कीन्हे भद्दी।१।
झूठ कपट औ बिषय में लागे भई बात सब भद्दी।२।
पल भर सुख नहिं मिलै चेत करु है यह पाप की गद्दी।३।
सतगुरु करि हम तुम हरि सुमिरैं जाय बयस क्यों रद्दी।४।