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६२९ ॥ श्री कलुई माई जी ॥


पद:-

सूरति शब्द में जाकी लागै तब वह गगन में खेलै खेल।१।

ध्यान प्रकाश नाम धुनि लय हो जियत गई भव झेल।२।

अनहद सुनै देव मुनि दर्शैं सब से होवै मेल।३।

सन्मुख राम सिया की झांकी तन तजि निज पुर पेल।४।