६३० ॥ श्री झवुली माई जी ॥
पद:-
जो कोइ सतगुरु करि जप विधि ले सो चलि गगन में खेले फाग।
ध्यान प्रकाश नाम लय पावै मेटै भव की आग।
अनहद सुनै देव मुनि भेंटैं गावैं मधुरे राग।
राधेश्याम को सन्मुख निरखै तन मन प्रेम में पाग।
सूरति शब्द का मारग यह है रहै न नेको दाग।५।
अजपा एक तार रहे जारी टूटि सकै नहिं ताग।
नर नारी सब बिनय मानि मम जियति जाव अब जाग।
अन्त त्यागि तन चढ़ि सिंहासन राम धाम जाव भाग।८।