६३५ ॥ श्री ठाकुर मथुरा सिंह जी ॥
पद:-
पहिनो राम नाम की माला।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो मथुरा कह तजि गाला।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि पाय ठोंकिये ताला।
अनहद सुनो देव मुनि दर्शैं डरैं असुर यम काला।
हर दम नयनन सन्मुख निरखौ श्री राधे नन्द लाला।५।
सूरति शब्द क मारग यह है होय विहंग की चाला।
अजपा या को सुर मुनि भाख्यो कर जिह्वा नहिं हाला।
अन्त त्यागि तन लेहु अचल पुर सुनो बिनय नर बाला।८।