साईट में खोजें

६३६ ॥ श्री भारत सिंह जी ॥


पद:-

पहिनो राम नाम की सेल्ही।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो अजा जाय ह्वौ चेली।

ध्यान धुनी परकाश दशा लय में सुधि बुधि जाय बेली।

सुर मुनि मिलैं सुनो नित अनहद कौन सकै तब ठेली।

सीता राम सामने निरखौ चारौं मुक्ति सकेली।५।

सूरति शब्द का मारग यह है जो जानी सो खेली।

अन्त समय साकेत को जाई फिर भव दुख नहिं झेली।

भारत कहैं भक्त सो सांचा जो यहि मारग पेली।८।