६३८ ॥ श्री पंडित सोहन लाल जी ॥
पद:-
हौ हौ हौ हौ करै बचावै किसी को जब कोइ मारै जी।
ना मानै तब चरण पकड़ि ले तब दाया उर धारै जी।
शान्ति दीनता गहै जवन कोइ पग पीछे नहि टारै जी।
सोइ सूर समर यह जीतै तन के असुर पछारै जी।
घूमि घूमि कै जग के जीवन दै उपदेश सुधारै जी।५।
हर्ष शोक ताको नहि ब्यापै तन मन धर्म में बारै जी।
श्री गुरु मोको यही बतायो किसी क दिल मति बारै जी।
अन्त त्यागि तन चढ़ि सिंहासन सो बैकुण्ठ पधारै जी।८।