६३९ ॥ श्री खबरदार शाह जी ॥
पद:-
लीजै राम नाम की ओट।
नर तन पाय चेतिये भाई बने फिरत क्यों बोट।
सतगुरु करि जप भेद जानिये नित चरनन पर लोट।
सारे असुर पकड़ि के बांधो दखल करो निज कोट।
निर्भय चहै तहाँ फिर घूमौ सकै कबन करि चोट।५।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि मिलै बनो सब छोट।
दर्शन देन देव मुनि आवैं कहैं राम यश पोट।
सिया राम की झांकी सन्मुख कौन कहै फिर खोट।
पवन तनय नित लाय लाय कर खूब खिलावैं रोट।
सूरति शब्द क मारग यह है चढ़ि जावै मन घोट।१०।
जियतै तै सब करो इहाँ पर छूटै पाप की मोट।
तन तजि अचल धाम हो दाखिल जाय नाम ह्वै नोट।१२।
दोहा:-
तन मन प्रेम में सोंटि ले, सो पावै निज धाम।
दुर्लभ तन को पाय कर, चेत करो नर बाम।१।