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६४० ॥ श्री हाजी साहब वारिस अली देवैं शरीफ़ जी ॥


पद:-

सिया राम राधे श्याम लक्ष्मी बिष्णु एकै जान लो।

वारिस अली हाजी कहैं यह सखुन मेरा मान लो।

मुरशिद करो पाओ पता परकाश लय धुनि ध्यान लो।

सुर मुनि मिलैं तन में लिपट अनहद कि मधुरी तान लो।

हर समय झांकी षट लखो तन मन को प्रेम में सान लो।५।

दीनता औ शान्ति से खुद आप को पहिचान लो।

सब पर रहम करते रहो यह जहाँ में नित दान लो।

जगै नागिन चक्र बेधैं कमल फूल फूलान लो।

श्वांस सुखमन विहँग मारग ह्वै चलै सुख खान लो।

गंगा औ यमुना सरस्वती की बिमल जल स्नान लो।१०।

झरै अमृत गगन ते जब चहै तब करि पान लो।

अन्त तन तजि यान चढ़ि हरि धाम चलि के थान लो।१२।


शेर:-

सूरति शब्द में जब लगै तब जियति ही सब सुख लहै।

अजपा यही है जानिये वारिस अली हाजी कहै।१।