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६४२ ॥ श्री लचपच शाह जी ॥


पद:-

लचपच कहैं हरि को भजौ अब डगमगाना छोड़ दो।

सतगुरु करो पाओ पता चट भर्म भांड़ा फोड़ दो।

धुनि ध्यान लय परकाश हो असुरन के गहि मुख मोड़ दो।

सन्मुख में सीता राम हों भव फांस जियतै तोड़ दो।

सुर मुनि मिलैं अनहद सुनौ इस मार्ग पर तो गोड़ दो।

तन छोड़ जावो अचल पुर जब प्रेम सांचा जोड़ दो।६।