६४३ ॥ श्री निर्बल शाह जी ॥
पद:-
दीन बन्धु दयाल प्रभु हैं पामरन को तारते।
जे नाम में मतवार हैं तिनके करम दोउ जारते।
धुनि ध्यान लय परकाश दें सन्मुख में रोज निहारते।
गर भक्त खेल में रूठते तो हंसि उन्हैं चुपकारते।
गोदी उठा मुख चूम कर ऊपर को नाथ उलारते।५।
अनहद सुनो सुर मुनि मिलैं हरि यश भनैं सुख सारते।
सतगुरु करो पाओ पता छूटो जगत के भार ते।
निर्बल कहैं बलवान सो जो नहीं हिम्मत हारते।८।