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६४५ ॥ श्री शँखुली शाह जी ॥


पद:-

पढ़त पढ़त तन जाय बुढ़ाय, सुनत सुनत जावै अकुलाय।१।

लिखत लिखत जावै अंधराय, सतगुरु बिन जप भेद न पाय।२।

या से जीव परा चकराय, केहि बिधि निकसि वतन को जाय।३।

कहैं शंखुली बचन सुनाय, मानौ चहै न मानौ भाय।४।