६४६ ॥ श्री ठाकुर बिजय बहादुर सिंह जी ॥
पद:-
बाबा साधू सन्त महात्मा स्वामी बाजैं गुरु महाराज।
मूड़ मुड़ाये जटा रखाये कोइ तन राखत साज।
जगत सुधारन के हित आये घूमत करत अकाज।
तन के असुर जीत नहिं पायो नेक न आवत लाज।
तत्व की बात अगर कोइ पूछै कड़के जैसे गाज।५।
जो न हटै तो झपटि के पकड़ैं जैसे लवा को बाज।
सारी आयू इसी में बीती सारयों नहिं निज काज।
अन्त त्यागि तन नर्क को जावैं पापिन में सिरताज।८।
दोहा:-
सतगुरु बिन नहिं भव तरै सत्य बचन प्रमान।
बिजय बहादुर सिंह कह, खुलै न आंखी कान।१।