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६६६ ॥ श्री लुक्कन शाह जी ॥


पद:-

नन्द का लाला कन्हैया सब के सिर का ताज है।

प्रेम से सुमिरन करो सन्मुख में आप बिराज है।

दीन दुखियों के हरै दुख क्या गरीब निवाज है।

हति दुष्ट फिरि बैकुण्ठ दें निज नाम की खुद लाज है।

मुरशिद करो पावो पता घट ही में तो व्रज राज है।५।

धुनि ध्यान लय परकाश हो बाजत मधुर क्या साज है।

सुर मुनि मिलैं सत्संग हो कहैं नाम ही का राज्य है।

लुक्कन कहैं तन मन लगै ताको सुफल सब काज है।८।