६६८ ॥ श्री लंठ शाह जी ॥
पद:-
मेरा दीवान हो कर मन मुझे जग में लुभाता क्यों।
कमा ले धर्म धन सँग में उसे यहँ पर लुटाता क्यों।
भजन करने को गर बैठें तो तू आकर बकाता क्यों।
नहीं चालाक कोइ तुझ सा जाय कर घूमि आता क्यों।
बे-धरम बे-शरम है तू मुझे ब मुख दिखाता क्यों।
करूँ मुरशिद तुझे मारूँ मुझे बाग़ी बनाता क्यों।६।