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६७२ ॥ श्री खुदा बख्श जी ॥ (४)

क्या अजब कौतुकी मौला है कैसा यह खेल पसारा है।

मुरशिद करके कछु जानि लेहु वरना वह अगम अपारा है।

आपै सब में परिपूरन है औ आपै सब से न्यारा है।

आपै बना खिलाड़ी है औ आपै करत दिदारा है।

खुदा बख्श कहैं जियतै न लखै सो कभी न उसका प्यारा है।

लो नगद नशा नर-नारि सुनौ क्या दाम मिला हथकारा है।६।


शेर:-

दुआ करते हैं सलामत रहैं सब मेरी तरह।

ज़िक्र मौला क करैं, मस्त रहैं मेरी तरह।१।