६७२ ॥ श्री खुदा बख्श जी ॥ (३)
बँसुरिया मधुर बजाई, तुम्हें कौने बतलाई त्रिभुवन-भुवाल रसिया हाँ।१।
देखत में हरी हरी, अजब कौतुक की भरी डाल गई गले फँसिया हाँ ।२।
जब से कूक पड़ी कानन में छिन पल कल नहिं घर आँगन मे
सब के उर बसिया हाँ।३।
सूरति शब्द कि जाप को पकड़ो, खुदा बख्श कहैं प्रेम में जकड़ो,
तव सन्मुख लसिया हाँ।४।