६७३ ॥ श्री अला हुसेन जी ॥ (१)
दीन बनि मेहनत करौ हरि को भजो तब ठीक हो।
मुरशिद करौ मारग मिलै काहे को बैठे फीक हो।२।
धुनि ध्यान लय परकाश सन्मुख श्याम राधे नीक हों।
यह सखुन मेरा मानिए नर नारि पत्थर लीक हो।३॥
दीन बनि मेहनत करौ हरि को भजो तब ठीक हो।
मुरशिद करौ मारग मिलै काहे को बैठे फीक हो।२।
धुनि ध्यान लय परकाश सन्मुख श्याम राधे नीक हों।
यह सखुन मेरा मानिए नर नारि पत्थर लीक हो।३॥