६७३ ॥ श्री अला हुसेन जी ॥ (२)
श्याम-प्रिया सन्मुख छबि छावैं, सतगुरु करि भजौ तन मन लाइकै।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि, सुर मुनि बिहँसि मिलैं उर लाइकै।
अमृत पियौ सुनौ घट अनहद विधि गति भाल से जियत कटाय कै।
नागिन जगै चक्र षट नाचैं सातौं कमल खिलैं फर्राय कै।
भांति भांति की खुशबू आवै क्या बरनौं यह आनन्द पाय कै।
अन्त समय चलि-चढ़ि सिंहासन निजपुर राजौ जग यश छायकै।६।