६८५ ॥ श्री रागी दास बाबा जी ॥
पद:-
नाम धुनि जागी धीरे धीरे।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो तब आपै मन लागी धीरे धीरे।
ध्यान प्रकाश समाधी होवै चोर जांय सब भागि धीरे धीरे।
अनहद सुनो पिओ घट अमृत तब चारज को मांगी धीरे धीरे।
सुर मुनि मिलैं देंय नित आशिष होहु न कबहूँ दागी धीरे धीरे।५।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख जावैं तागी।
नर तन पाय जियत सुख लूटौ बनि बैठे क्यों बागी।
अन्त त्याग तन निजपुर बैठो सत्य कहत पद रागी।८।