६९० ॥ श्री नैमिसारन्य जी ॥
पद:-
जे कोइ रहैं मम ढिग आय।
जाप बिधि सतगुरु से जानै भजै प्रेम लगाय।
ध्यान धुनि परकाश लै हो मिलैं सुर मुनि जाय।
चखै अमृत सुनै अनहद बजत बिमल बधाय।
नागिन जगि होय सीधी चक्र षट घुमरांय।५।
खिलैं सातों कमल सुंदर अजब महक उड़ाय।
राम सीता कृष्ण राधे बिष्णु कमला माय।
छटा छबि शिंगार सन्मुख हर समय दें छाय।
गोमती नित पय पियावैं अर्ध निशि में लाय।
दीनता औ शांति पद गहि त्यागि मान बड़ाय।१०।
अंत तन तजि लेहिं निजपुर आवा गमन नशाय।
कहैं नैमिष मम बचन सुनि चेतो भक्तों भाय।१२।