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६९३ ॥ श्री मंजारी माई जी ॥

पद:-

गैल मेरी रोकत काहे श्याम।

मैं यमुना जल भरन जात हौं घर की अकेली बाम।

बोलैं तो चट देते गाली, पकड़ैं तो वंशी पट मारी

रोज क है यह काम।

हैं हैरान सबै बृज बाला, नन्द यशोमति या हित पाला

छोड़ जांय सब ग्राम।

सतगुरु करै निरखि सो पावै, सूरति शब्द पै अपनी लावै

सुफ़ल होय नर चाम।

सन्मुख श्याम सखा सखि राधा, जिन सुमिरे छूटत सब बाधा

अन्त अचल पुर धाम।६।