६९३ ॥ श्री मंजारी माई जी ॥ (३)
पद:-
छमा छम पगन में नूपुर बाजैं मनोहर रहस बिहारी के।
फेंटा में मुरली तहं राजत सब सुख कारी के।
कर से कर पकड़ैं झुक झूमत राधा प्यारी के।
संग में सखा सखी सब नाचत तन मन बारी के।
दौरत बैठि-लेटि उठि कूदत बारी बारी के।५।
नैन सैन से भाव ताल दै दोउ कर तारी के।
गति के संग में गान होत नहिं मौन पुकारी के।
भांति भांति के साज बजत तहँ पारी पारी के।
चम चम चमकैं रतन घेंघरा चोली सारी के।
इतर फुलेल की गमक काम रति गति दियो मारी के।१०।
जल चर थल चर नभ चर मोहें डारी डारी के।
शारद शेष बताय सकैं नहिं ब्रज सुख भारी के।
या से सतगुरु करि सुख लूटो करमन टारी के।
नागिन जगै चलै रंग बदलै आलस जारी के।
षट चक्कर औ कमल सातहूँ जाय सुधारी के।१५।
अनहद सुनो पिओ घट अमृत बहती क्यारी के।
सुर मुनि मिलैं देंय हंसि आशिष जय जय कारी के।
ध्यान धुनी परकाश दशा लय सुधि बुधि ढारी के।
है अनमोल समय स्वांसा तन नर औ नारी के।
जियति लखै सो है दोनों दिशि पितु महतारी के।२०।