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६९३ ॥ श्री मंजारी माई जी ॥ (४)


पद:-

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो निरखौ राधा माधव नाचत।

सखा सखी संग में सब सोहत छम छम छम पग नूपुर बाजत।

चमकैं बसन तरंगैं आवैं फहर फहर फहरैं जब भाजत।

सुर मुनि नभ ते फूल गिरावैं कर जोरैं बिहँसै फिर गाजत।

मुरली की धुनि त्रिभुवन फैली काम रती बैठे छिपि लाजत।५।

गान बजान ताल स्वर सम दै को बरनै मुद मंगल छाजत।

शान्त दीन बनि के नर नारी सूरति शब्द पै धरि जे भांजत।

अन्त त्यागि तन चढ़ि सिंहासन ते निज धाम में जाय बिराजत।८।