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६९३ ॥ श्री मंजारी माई जी ॥ (५)


पद:-

जागने वाले क तप धन कौन पाया लूटि के।

सतगुरु किया सुमिरन खुला तन लगाया जूटि के।

नागिन जगी चक्कर चले फूले कमल दल छूटि के।

सुर मुनि मिले अनहद सुना अमृत पिया नित घूंटि के।

परकाश लय धुनि ध्यान जाना चोर सारे कूटि के।

सन्मुख में सीता राम निजपुर को गाय तन छूटि के।६।