६९५ ॥ श्री अनारी शाह जी ॥
पद:-
लखौ सन्मुख सदा झांकी बिहारी जी बिहारी जी।
करौ सतगुरु मिलै मारग करारी जी करारी जी।
अधर पर हैं धरे वंशी सुखारी जी सुखारी जी।
बजावैं जब चहै सुनिये धुनि प्यारी जी धुनि प्यारी जी।
पगों में राजते घुघुँरू बलिहारी जी बलिहारी जी।५।
हिला दें जिस समय उठती छुनकारी जी छुनकारी जी।
भनै को शेष औ शारद गे हारी जी गे हारी जी।
खुलै जब नाम रग रोवन रंकारी जी रंकारी जी।
ध्यान तब हो तिमिर नाशै उजियारी जी उजियारी जी।
चलौ लय में जहां सुधि बुधि बिसारी जी बिसारी जी।१०।
पिऔ अमृत सुनौ अनहद गुमकारी जी गुमकारी जी।
देव मुनि नित करैं सेवा तिहारी जी तिहारी जी।
बिहँसि कै तन चरन चापैं निहारी जी निहारी जी।
जगै नागिन चलैं चक्कर भनकारी जी भनकारी जी।
कमल फूलैं उड़ै खुशबू क्या प्यारी जी क्या प्यारी जी।१५।
जांय मिटि भाल से बिधि की लिखारी जी लिखारी जी।
दीनता शान्ति गहि बनिहैं भिकारी जी भिकारी जी।
वही इस पद को पावैं हो जयकारी जी जयकारी जी।
गर्भ में क्या कहा प्रभु से चिकारी जी चिकारी जी।
करूं एकतार चलि सुमिरन चुपमारी जी चुपमारी जी।२०।
यहां आकर चढ़ी जग की खुमारी जी खुमारी जी॥
इसी से हर समय रहता दुखारी जी दुखारी जी।
सतोगुण का करो भोजन सम्हारी जी सम्हारी जी।
दमन इन्द्री इसी से हों मन हारी जी मन हारी जी।
भगैं सब असुर दल निद्रा बिलारी जी बिलारी जी।२५।
बताया यह जतन हमको त्रिपुरारी जी त्रिपुरारी जी।
समाधी सहज में तन मय सुख भारी जी सुख भारी जी।
बिनय यह सुनि के उर धरिये नर नारी जी नर नारी जी।
कहूँ कर जोरि के सब से पुकारी जी पुकारी जी।
नाम मेरा कहैं सब जन अनारी जी अनारी जी।३०।