६९६ ॥ श्री टेरी शाह जी ॥
पद:-
भक्तों सिद्धी बज्र की बेरी।
सान मान अभिमान लेइ गहि देइ नरक में गेरी।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो छोड़ो हम तुम फेरी।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि जियत लेव कर ढेरी।
प्रिया श्याम की झांकी सन्मुख तुम्हैं हर समय हेरी।५।
सुर मुनि आय आय दें आसिष नेक न लागै देरी।
अमृत पियो सुनो घट अनहद बिनय करैं यह टेरी।
अंत त्यागि तन चलो अचल पुर सब दिसि जै जै तेरी।८।