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७०४ ॥ श्री गुरुचरन दास जी ॥


पद:-

मन मेरो श्री गुरु चेरो।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि हर शय से हो टेरो।

सुर मुनि मिलैं बिहंसि उर लावैं कहैं भ्रात मैं तेरो।

अनहद सुनै पियै नित अमृत जो है गगन में गेरो।

नागिन जगै चक्र षट नाचैं सातों कमल उजेरो।५।

सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि हर दम सन्मुख हेरो।

मानुष का तन पाय कीन नहिं निज काया में फेरो।

ते तन त्यागि पड़ैं चौरासी महा घोर अंधेरो।

जम के दूत पकड़ि लै जावैं पीटैं देह दरेरो।

तब फिर कौन सहायक होवै जाय करै भट भेरो।१०।