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७०५ ॥ श्री फिरंगी शाह जी ॥


पद:-

द्वैत की नारि नंगी है बड़ी दुशमन तरंगी है।१।

बजाती क्या सरंगी है नचाती जैसे वंगी है।२।

बना लेती बे ढँगी है खाय जैसे नरंगी है।३।

बिना सतगुरु कुरंगी है सुनाता पद फिरंगी है।४।