७०७ ॥ श्री फुरती शाह जी ॥
चेतावनी:-
घो चे पू बिन पढ़ नहि मिलता
वैसे गुरु बिन ज्ञान न खिलता।
पद:-
भजु जुड़ती फुरती सुरती। धुनि ध्यान नूर लय मुरती।२।
तब काहे को माया घुरती। जब शब्द में लागै सुरती।४।
जो नाम के रंग में चुरती। जम काल मृत्यु को हुरती।६।
जब तन की होवै पुरती। जग छूटै जैसे कुरती।८।