७०८ ॥ श्री जुरती शाह जी ॥
पद:-
चल शरन श्री सतगुरु की, तब राह मिलै निज घर की।१।
सुर मुनि नित देवैं भुरकी हंसि पकड़ैं तेरी चुरकी।२।
हर जानत सब के उर की काहे माया घुरकी।३।
तन छूटै जैसे लुरकी यह बात मानिये फुरकी।४।
पद:-
चल शरन श्री सतगुरु की, तब राह मिलै निज घर की।१।
सुर मुनि नित देवैं भुरकी हंसि पकड़ैं तेरी चुरकी।२।
हर जानत सब के उर की काहे माया घुरकी।३।
तन छूटै जैसे लुरकी यह बात मानिये फुरकी।४।