७१० ॥ श्री फ़कीर शाह जी ॥ (२)
जो रास्ता है फ़कीरों का उसी रस्ते पे चलना है।
करो मुरशिद पता पाओ नेकहु उस में छल ना है।
ध्यान धुनि नूर लय होवै लिखा बिधि का भि मलना है।
हर समय सामने झांकी झूलते श्याम पलना है।
अन्त तन त्यागि निजपुर लो फेरि जग में न ढलना है।५।
प्रेम तन मन से जब होवै तो भक्तों इस में बल ना है।
जो हुशियारी में हैं बाझा उसी को जाने तलना है।
बिना वरजिश के हो कैसे पेड़ है फूल फल ना है।
करम भूमी में आ करके किया जिसने यह हल ना है।
अंत तन छोड़ि दोजख हो मिलत जहं नेक कल ना है।१०।