साईट में खोजें

७११ ॥ श्री छलबल शाह जी ॥


पद:-

राम के बायें लखन के दहिने महरानी की झांकी जी।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो तब सन्मुख में टांकी जी।

सुर मुनि मिलैं सुनौ घट बाजा अमी पियो नित छाकी जी।

नागिन जगै चक्र षट नाचैं खिलैं कमल की फाँकी जी।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि की जारी हो चाकी जी।५।

माया असुर मौन ह्वै भागैं घूमि सकैं नहिं ताकी जी।

गर्भ करार जियति में तै हो रहै न नेकौ बाकी जी।

तन मन प्रेम लगाय जाय जुटि सो बिधि की गति आंकी जी।

पढ़ि सुनि लिखि जो ज्ञान बघारैं सो चलि नर्क में पाकी जी।

चौरासी में चक्कर काटी जम खेलैं जिमि हाकी जी।१०।

मल औ मूत्र देयं जल भोजन हाय हाय करि डाकी जी।

दया धर्म दूतन के नाहीं कौन सुनै तब काकी जी।

मानुष चोला सुरन को दुर्लभ भक्ति नहीं पितु मां की जी।

दाग लगा हा अपने कुल में छल बल लखि लखि थाकी जी।

हाथ जोड़ हम भक्तों बिनवै मति जैसी हो जाकी जी॥१५।

वैसै वाको नीक लागिहै संगति भाव को ढाँकी जी।

बड़े सुकृत से सत संगति पद ओट मिलै तब राकी जी।

यहाँ वहाँ ते बिजय पत्र भा टूटी टाटी वाकी जी।१८।