७१२ ॥ श्री काहिल शाह जी ॥ (२)
पद:-
काहिल कहैं काहिल वही सतगुरु के ढिग आया नहीं।
ध्यान धुनि परकाश लय में निज को बिसराया नहीं।
अमृत को पी अनहद को सुनि सुर मुनि को उर लाया नहीं।
नागिन जगा चक्कर घुमा सब कमल फहराया नहीं।
राम सीता की छटा छबि सामने छाया नहीं।५।
सूरति शब्द का रास्ता दीनों को बतलाया नहीं।
द्वैत का परदा हटा जीवों पर की दाया नहीं।
त्यागि तन नरकै गया नर तन क फल पाया नहीं।८।
शेर:-
भाव के आवेश में जिस भक्त का तन मन भरा।
जान लो वह भक्त सीता राम का प्यारा खरा।१।