साईट में खोजें

७१३ ॥ श्री कुरबान शाह जी ॥


पद:-

कुरबान किया तन मन धन को सतगुरु के ऊपर भक्त वही।

धुनि ध्यान प्रकाश समाधि मिली सन्मुख सिया राम क रूप रही।

सुर मुनि सब आय करैं जै जै तन भेटैं नैनन नीर बही।

नागिन जागै षट चक्र चलैं सातौं कमलन की गंध लही।

बाजा सुनि सुनि के श्रवण छकैं अमृत पी रसना मौन गही।५।

तन छोड़ि गया हरि रूप भया संसार की जार में नाही ढही।

कुरबान शाह कह भजन करो सांचे बनि प्यारे फ़र्ज यही।

नाहीं तो नर्क में गर्क हो अब फर्क पड़ा यह कौन चही।८।