७१४ ॥ श्री जगन भरभूजा जी ॥
पद:-
करिये मन से नाम की पूजा।
सतगुरु करि सब भेद जानि लो और न कोई दूजा।
ध्यान प्रकाश समाधि धुनी हो हर शय में जो गूंजा।
जियतै जानि तरो और तारौ छूटै भव की सूजा।
उमा रमा ब्रह्माणी दें नित दिब्य तुम्हैं खरबूजा।
हर दम श्याम प्रिया रहैं सन्मुख कहैं जगन भरभूजा।६।
सूरति मन को कहत हैं शब्द को कहते नाम।
जगन कहैं या के बिना सरै न कोई काम।१।
आलस सम कोई पाप नहि जगन कहैं जग माहिं।
या के बिन जीते कोई राम धाम नहिं जाहिं।२।
ईश्वर मृत्यु का भय जिसे हर दम रहता जान।
जगन कहै सो आलसै मारै बान से तान।३।
बिन भय नर्क से बचे को सुर मुनि की यह बान।
जगन कहै जुट जाव चट नेम टेम को ठान।४।
आलस्य तन मन लूट कै मृत्यु को दीन गहाय।
जगन कहै नर्कै गये रोये नहीं सेराय।५।