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७२० ॥ श्री आलस्य शाह जी ॥ (४)

सतगुरु करि के अब मार्ग गहो में संसार में कोई तेर नहीं।

श्रद्धा विश्वास अटल होवै सिय राम मिलन में देर नहीं।

सर्गुन निर्गुन बनि संग खेलैं भक्तों की भक्ति में फेरि नहीं।

धुनि ध्यान प्रकाश समाधी हो सुधि बुधि की जा पर टेर नहीं।

सुर मुनि भेटैं घट साज सुनौ अमृत चाखौ कोई हेर नहीं।५।

शिव शक्ती जागै चक्र चलैं सब कमल खिलैं चट बेर नहीं।

बिधि हरि हर का जप ध्यान यही माया करती मुठ भेर नहीं।

तन त्यागि चलो साकेत डटो तब गर्भ में कोई शमशेर नहीं।


शेर:-

सतगुरु को तन मन देवै कटने की कोई शमशेर नहीं।

आंखैं व कान खुलैं वाके सत्य मानो नेकौ देर नहीं॥