७२५ ॥ श्री स्वांसा शाह जी ॥
पद:-
भक्तों स्वांसा का सब खेल।१।
सार असार इसी के अन्दर जानत नहिं ते फेल।२।
सतगुरु करि जो भेद जानि ले होय ब्रह्म से मेल।३।
अन्त त्यागि तन गर्भ न आवै बैठे निज पुर पेल।४।
पद:-
भक्तों स्वांसा का सब खेल।१।
सार असार इसी के अन्दर जानत नहिं ते फेल।२।
सतगुरु करि जो भेद जानि ले होय ब्रह्म से मेल।३।
अन्त त्यागि तन गर्भ न आवै बैठे निज पुर पेल।४।