७३४ ॥ श्री लताफत हुसेन जी ॥
पद:-
जे हर दम रब को नहिं जपते न इत्थे के न उत्थे के।
सदा परपञ्च में रहते न इत्थे के न उत्थे के।
पढ़ते सुनते औ हैं भुँकते न इत्थे के न उत्थे के।
नाम धुनि रूप नहिं लखते न इत्थे के न उत्थे के।
नूर औ लय में नहिं परते न इत्थे के न उत्थे के।५।
अन्त दोजख में जा गिरते न इत्थे के न उत्थे के।
जे मुरशिद से नहीं मिलते न इत्थे के न उत्थे के।
लताफ़त कह वही गिरते न इत्थे के न उत्थे के।८।