७३५ ॥ श्री हशमत खाँ जी ॥
पद:-
करि लेव याद अल्ला। तन है ये आबे बुल्ला॥
यम दूत पकड़ैं झुल्ला। घुंटिहै न आवे कुल्ला॥
पण्डित बनो चाहे मुल्ला। संघ में न जाय छल्ला॥
तब रोओ करि के हल्ला। यम तूरैं तन के पल्ला।८।
पेशी पै होग गिल्ला। कहता हूँ खुल्लम खुल्ला॥
बनते यहाँ बतुल्ला। फिरि क्या वहाँ कबुल्ला॥
सोते हो क्यों भदुल्ला। अब जागिये सहुल्ला॥
हशमत कहैं जो तुल्ला। सो पाय रव रसुल्ला।१६।