७४२ ॥ श्री मोती माल खां ॥
जारी........
पद:-
शफ़ालू साफ़ कहते हैं बिना सुमिरन न सुख होई।
जो गाफ़िल हो के बैठेगा वह कल्पों नर्क में रोई।
करै तन मन लगा सुमिरन प्रेम करि हरि लखै सोई।
सुरति को शब्द पर धरि कै ख्याल में मस्त मन नोई।
ध्यान धुनि लय औ उजियारी उसे मानो अवश्य होई।५।
कर्म शुभ अशुभ जरि जावैं द्वैत तन से भगै रोई।
मिलौ सतगुरु से आरति हो देंय सब भर्म को खोई।
नाम साबुन तुम्हैं देंगे रगड़िये मैल सब धोई।
साफ़ आईना होय लक लक छटा सन्मुख में तब होई।
देव मुनि संग बतलैहैं कहै वह सुक्ख किमि कोई।१०।
मिलै आनन्द यह उनको प्रथम जिन बीज को बोई।
जियत में जान कर प्यारे अन्त साकेत सुख सोई।१२।
७५६ ॥ श्री संकटा दीन जी ।
पद:-
संकटा कह हटै संकट जो हरि चरनन में चित लागै।
सुरति को शब्द पर धरि कै करै जब ख्याल तब जागै।
ध्यान धुनि नूर लय पावै एक रस हो के तब पागै।
छटा सिय राम की सन्मुख द्वैत का टूटै तब धागै।
रहै इच्छा न कछु बाकी कहै फिरि और क्या मांगै।५।
देव मुनि आय दें दर्शन लगै तन में न फिरि दागै।
कमल सातौं औ षट चक्कर जगै नागिन हो अनुरागै।
वही फिरि अन्त हरि पुर को सिंहासन चढ़ि के चट भागै।८।
७५७ ॥ श्री हजारी दास जी ।
पद:-
छिपि छिपि के करते पाप यार वँह चलिहौ तब सब सुनवावैं।
जो मन में उठत बिचार यहां वहँ चित्रगुप्त से लिखवावैं।
वहँ खाता तुम्हरे सन्मुख में इजलास के ऊपर धरवावैं।
तब काह बताओगे वँह पर यमदूतन ते खुब पिटवावैं।
फिर नर्क में जाय तुम्हैं सुनिये हर दम दुख भारी दिलवावैं।५।
जो रोये नहीं सेराय सकैं खग श्वान सिंह धरि धरि खावैं।
या से सतगुरु करि हरि सुमिरौ सिय राम सामने छबि छावैं।
धुनि ध्यान प्रकाश समाधी हो हम सांच तुम्हैं यह समझावैं।
सुर मुनि आय के दें दर्शन हरि यश सुनिये कैसा गावैं।
जियतै जे जन तय कर लेवैं ते गर्भ बास फिरि नहिं पावैं।१०।
यह सुरति शब्द का मारग है सच दास हजारी बतलावैं।
तन मन से प्रेम लगै भाई सो या को सहजै में पावैं।१२।