७७२ ॥ श्री शिकारी शाह जी ॥
पद:-
हम तुम सब आवैं फिर जावैं यह सृष्टि का काम रहै जारी।
है कर्म प्रधान सुनो भक्तों या में चलती नहिं हुशियारी।
सतगुरु करि सुमिरन विधि जानै सो बिधि का लेख सकत टारी।
धुनि द्यान प्रकास समाधी हो जहं पर सुधि बुधि होवै छारी।
अमृत पीवै घट साज सुनै सुर मुनि बोलैं जै जै कारी।५।
नागिन जागै सब चक्र चलैं सब कमलन फूलै फुलवारी।
कहें शाह शिकारी तन छूटै बैठौ निज धाम में सुख भारी।
यह ख्याल करै औ धीर धरै सो आखिर होवै दरवारी।८।