७७१ ॥ श्री खट पट शाह जी ॥ (२)
बहू कौशिल्या की बड़ी सुन्दर।
संग दमाद जनक को राजत लज्जित निरखि पुरन्दर।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो देखो बाहर अन्दर।
इस तन में हैं चार पदारथ ढूंढत बन गिरि कन्दर।
जब तक मन काबू नहि होवै तब तक समझो बन्दर।
भीतर गोता जब यह मारी पावै नाम का मुन्दर।६।